Friday 23 August 2019

" आवाज "

मत समझ मुझे खिलौना ,
मैं तो ईश्वर का दिया हुआ वरदान हूं ,
जहां वह खुद नहीं पहुंच सका ,
वहां उसका भेजा हुआ वरदान हूं ,
कभी नन्ही सी बेटी ,कभी कलाई की राखी ,
कभी तेरे नाम की चुनर उड़ी दुल्हन ,
तो कभी तुझे जन्म देने वाली मां का रूप हूं ,
फिर क्यों यह समाज मुझे ऐसी नजरों से देखता है ,
क्यों ऐसे घूंट घूंट के जीना पड़ता है ,
क्या मुझे हक नहीं खुलकर जीने का ?
घर से बाहर निकलु तो वही गंदी नज़रें ,
क्या यह शरीर ही सब कुछ है उनके लिए ?
मुझे और कुछ नहीं मेरा हक चाहिए ,
मुझे ज्यादा नहीं बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए।।।

                 - " फुल "
       

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